Saturday 1 December 2012

आतंक------------------ यानी फांसी


मुम्बई हमले के आरोपी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को तो हमने फांसी दे दी पर अपने ही देश में रह रहे उन आतंकियों हम कब फांसी देंगे जो आये दिन अपने ही देश में अपना आतंक फैलाते हैं जिसकी वजह से देश के अमन पसंद आम नागरिकों का जीना अपने ही देश में दूभर  होता है.
क्या किसी व्यक्ति द्वारा सिर्फ सामूहिक नरसंहार वह चाहे जिस रूप में हो , ही किया जाना आतंकवाद है ? हाँ ! परन्तु उसके साथ साथ अपने पैसे के बल पर व अपने ताकत के बल पर एक आम आदमी को परेशान करना जिसमे हत्या , लूट , बलात्कार , डकैती , भयभीत करना , आदि अपराध भी किसी आतंक से कम नही है , परन्तु हमारे देश का लचर कानून अपनी वेवजह की लाचारी के चलते ऐसे आतंकियों को फांसी पर लटकाने से पता नही क्यों पीछे हटता है !
आज हमारे देश में ही कितने ऐसे आतंकी है जो खुले आम अपनों को ही अपने साये में जीने को मजबूर कर रहे है , जिसके कारण हमारे देश के नागरिकों में अपने ही घर में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है .
हमारे देश की बिभिन्न अदालतों द्वारा आज तक पता नही कितने आतंक फैसले वालों को फंसी की सजा सुनाई जा चुकी है परन्तु फंसी पर आज तक कोई लटकाया नही गया क्योंकि किसी न किसी कारण वश वह बाइज्जत बरी हो गया या फिर उसकी सजा विचाराधीन हो गयी.
मेरे अनुसार विदेशी आतंकी और देशी आतंकी में सिर्फ इतना फर्क है की विदेशी आतंकी लगभग साल - दो साल में एक साथ सैकड़ो बेगुनाहों को मरता है और देशी आतंकी रोज पूरे देश में अलग - अलग जगहों पर सैकड़ों बेगुनाहों को मारता है.
अब आप ही बताइये की दोनों में क्या फर्क है ?
अगर हमें अपने देश में विदेशी आतंकियों को रोकना है तो हमें सबसे पहले अपने देश के आतंकियों ( वो चाहे छोटा आतंक फैलाता हो या बड़ा ) को फांसी पर लटकाना होगा जिससे हमारे कानून  की इस कड़ाई से देश में रहने वाले आतंकियों के साथ - साथ विदेशी आतंकियों को भी एक बार आतंक फैलाने से पहले सौ बार सोंचना पड़े.
इसमें कोई संदेह नही की यह सबसे कठोर दंड है लेकिन इस दंड को बिना देरी के दिया जाना चाहिए अगर इसमें देरी होती है तो इसका जो सख्त सन्देश है वह अपराधी व अपराधी की मानसिकता के लोगों तक नही पहंच पायेगा.
मेरा मानना है की आज अगर हम अपने घर के आतंकियों से अपने घर को सुरक्षित रखने में कामयाब हो जाते है तो विदेशी कसाब जैसों को हमारे घर पर निगाह उठाने से पहले लटकता हुआ फांसी का फंदा जरूर नजर आयेगा जो उनके दिलों दिमाग से हमारे देश का नाम मिटाने पर उनको मजबूर करेगा .

Wednesday 28 November 2012

चाइना---------- मतलब नो गारंटी



कहाँ  कुछ दिन पहले तक हम अपने बाज़ार में बिकने वाले हर सामान की गारंटी लिए बिना सामान नही खरीदते थे. वहीँ आज हम चायनीज सामान को बिना गारंटी के खरीद में एक मिनट भी देर नही करते आखिर  क्यों ?
आज भारतीय बाज़ार में चीन का दबदबा इतना बढ़ चुका है की हम उसे ही पसंद कर रहे है . जहाँ एक तरफ रोजाना भारत व चीन के रिश्तों में कहीं न कहीं खटास पड़ती दिखती है पर खिलौने व इलेक्ट्रोनिक के बाज़ार में चीन भारत में अपना पैर जमाता जा रहा है.
आखिर आज हमारे दिलो दिमाग से गारंटी नाम के शब्द की जगह क्यों समाप्त होती जा रही है . एक समय था कि हम बाज़ार से सामान लेते वक्त उसे ठोंकते बजाते साथ दुकानदार से उसके लम्बे समय चलने की गारंटी भी लेते.
परन्तु आज न हम चायनीज सामान को ठोंकते बजाते है न ही उसके गारंटी की इच्छा जाहिर करते है क्योंकि हम रोजाना निकलते नए फैशन के चलते नये सामान को खरीदने की इच्छा व छमता रखते है .
पर हमें एक बात जरूर  याद  रखनी चाहिए की  अच्छी कम्पनी का गारंटी वाला सामान ही हमारे लिए बेहतर है जबकि नो गारंटी वाला चायनीज सामान सिर्फ हमारे पैसे की बरबादी है और कुछ छाड़ की अंधी चमक जिसकी रौशनी सिर्फ चीन में ही दिखाई देती है .
आज चीन भारत में अपना इस तरह का ब्यापार फैलाकर खुद तो अंधा पैसा कमा रहा है वहीँ भारतियों को आंतरिक रूप से ख़ासा चूना लगा रहा है.
भारत सरकार को चाहिए की चाइना बाज़ार के इस ब्यापार को गारंटी प्रदान कराए जिससे  भोले भाले भारतीयों को चाइना की नो गारंटी की वजह से खुद को ठगा सा न महसूस करना पड़े.






Saturday 10 November 2012

क्या है फ़ैज़ाबाद की गुलाबबाड़ी?


मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में कौन नहीं जानता, प्रेम का प्रतीक ताजमहल अपनी खूबसूरती के लिए देश में ही नहीं बल्कि बिदेशो में भी मशहूर है। लेकिन आज यहाँ हम आपको ताजमहल के बारे में नहीं बल्कि फैजाबाद के नवाबों के शासन काल में निर्मित इमारतों में कुछ अलग सी दिखने वाली इमारत जो कि अवध के तीसरे नबाब शुजाउददौला का मकबरा गुलाबबाडी के नाम से मशहूर है के बारे में बताने जा रहे हैं
      जी हाँ हम बात कर रहे है गुलाबबाडी की, जिसका निर्माण स्वयं नबाब शुजाउददौला ने 1719 से 1775 ई. में कराया था। सन 1753 ई. में नबाब शुजाउददौला के पिता नबाब सफ़दर जंग का इंतकाल हो जाने के बाद उनका पार्थिव शरीर भी कुछ समय के लिये यहाँ रखा गया था। जो बाद में दिल्ली ले जाया गया लेकिन कब्र के निशान आज भी यहाँ है। 1775 ई. में  इंतकाल होने के बाद नबाब शुजाउददौला को भी यही सुपुर्दे खाक किया गयाअवध में तीन नवाब हुए पहले नवाब बुर्हनुल मुल्क सआदत खां दुसरे नवाब सफ़दर जंग और तीसरे नबाब शुजाउददौला नबाब सफ़दर जंग के बेटे थे। उनका असली नाम जलालुद्दीन हैदर था। उनको सुजाउददौला का ख़िताब अवध के सूबेदार नियुक्त किये जाने के पहले ही मुग़ल के बादशाह अहमद शाह ने दिया था। शुजाउददौला को मुग़ल हुकूमत के पतन और अफरा-तफरी के पूरा आभास हो गया था। इसलिए अवध का सूबेदार न्युक्त किया जाने के बाद उन्होंने देहेली की राजनीति से दूर रहना ही उचित समझा और अपना पूरा ध्यान अवध को सम्रधशाली राज्य बनाने पर केन्द्रित किया। उनके समय में अवध का राज्य इतना शक्तिशाली हो गया था कि दूसरे-दूसरे सूबेदार भी उनसे सहायता माँगा करते थे। अब देहली के फनकारों, साहित्यकारों ने अवध में बसना शुरू कर दिया। उस समय ईस्ट इण्डिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अवध को सुरक्षित करने की चिंता नबाब शुजाउददौला को सताने लगी इसीलिये 1764 में उन्होंने मीर कासिम के साथ अंग्रेजों से युद्ध लड़ा लेकिन दुर्भाग्य हार का मुंह देखना पड़ा। और तावान के रूप में भारी रकम अंग्रेजों को देनी पडी रकम भी इतनी बड़ी थी कि उनकी बेगम बहू बेगम साहिबा को अपने सुहाग कि निशानी नाक की कील भी बेचनी पडी। इस हार के बावजूद भी नबाव साहब ने हिम्मत नहीं हारी और कोड़ा जहानाबाद में मरहटों की सहायता से दूसरी बार अंग्रेजों से युद्ध किया लेकिन भाग्य नें इस बार भी साथ नही दिया और उनको अंग्रेजो से कड़ी और अनुचित शर्तों पर संधि करनी पडी। अवध के दो जनपदों कोड़ा और इलाहाबाद अंग्रेजों को देने पड़े और साथ में 50 लाख रूपये तावान के रूप में देने पड़े। नवाब शुजाउददौला का कार्य काल सन 1753 से 1775 तक का मना गया है नवाब सुजाउददौला 23 वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठ शासन प्रारंभ किया।
      आज फैजाबाद में जितनी भी एतिहशिक इमारते है वो सुजाउददौला या उनके मातहतो के द्वारा निर्मित है गुलाबबाडी की नायब खूबसूरती की चर्चे दूर-दूर तक थे। गुलाबबाड़ी के जो दरे बने है उनके बारे कहा जाता है की वह एक सीध में बने है और लखनऊ के हुसेनाबाद तक एक सीध में देखे जा सकते थे। नवाब शुजाउददौला इसमें आराम किया करते थे और यहीं से रियासत पर नजर रखते थे लखौरी ईंट से निर्मित नायब खूबसूरती लिये गुलाबबाड़ी में गुलाब के फूलों की कई दुर्लभ किस्मे हुआ करती थी जिसमे नवाब साहब सैर किया करते थे गुलाबबाडी के मकबरे में नवाब शुजाउददौला के वालिद नवाब सफ़दर जंग उनकी माँ मोती बेगम और खुद नवाब शुजाउददौला की कब्र लाइन से बनी है कुछ समय बाद नवाब सफ़दर जंग की कब्र को दिल्ली भेज दिया गया। गुलाबबाड़ी में एक इमामबाडा और एक मस्जिद है जहाँ नवाब साहब नमाज अदा किया करते थे। जहाँ आज भी मजलिसे और महफिले हुआ करती है।

जान पर खेल कर पेट पालता बचपन


धार्मिक नगरी अयोध्या में हर रोज़ हज़ारो लोग दर्शन और पूजन कर पुण्य कमाने आते है। पावन सलिला सरयू में डूबकिया लगाकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते है। और अपने को पवित्र करते है। लेकिन इसी अयोध्या के सरयू तट के किनारे समाज का एक स्याह पहलु भी नज़र आता है। जहां दर्जनों मासूम बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए अपने बचपन की ख्वाहिशो का गला घोट कर दो जून की रोटी के लिए जद्दोजेहद में लगे है
धर्म नगरी अयोध्या के सरयू तट के किनारे दर्जन भर ऐसे मासूम बच्चे है जो जान जोखिम में डाल कर नदी से पैसे निकलने और नाव चलाने का काम करते है। पूरे दिन नदी से सिक्के ढूँढने की कोशिश जारी रहती है और पूरे दिन की मेहनत के बाद जब शाम को चंद सिक्के हाथो में आते है तो इन्ही सिक्को से शाम की रोटी का जुगाड़ हो पाता है। सरयू की पवित्र धारा से सिक्के निकालने वाले तमाम बच्चे तो ऐसे है जिन्हें न तो स्कूल के बारे में पता है और ना ही किताबों के उनके लिए तो सरयू की लहरे ही उस किताब की तरह है जिसने उन्हें समाज में गरीबी के अभिशाप की कडवी सच्चाई से रूबरू कराया है। नदी में नाव चलाने और सिक्के निकालने का जोखिम भरा काम करने वाले ये मासूम अपनी मर्जी से ये काम नहीं करते बल्कि परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काम करने को मजबूर है। ये मासूम भी स्कूल जाना चाहते है। पढ़ना चाहते है। कुछ बनाना चाहते है। लेकिन इनके माँ बाप के पास इतने पैसे नहीं की वो इन्हें स्कूल भेज सके और इसी मजबूरी के चलते ये मासूम अपना बचपन पेट की आग में जला रहे है
वही इन मासूमो की इस मजबूरी के बदले सरकारी मदद के बारे में हमने जिला प्रशाशन के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने पहले तो इस तरह की किसी समस्या से इनकार कर दिया लेकिन इतना ज़रूर कहा की जांच में अगर सही पाया जायेगा तो इनकी मदद की जाएगी।
परिवार की मजबूरियों तले अपना बचपन खो रहे इन मासूम को नहीं पता की जिस पवित्र सरयू में एक डुबकी लगा लेने से लोगो के जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते है। उसी सरयू में दिन भर डूबे रहने के बाद भी ऐसा कौन सा पाप उन्होंने किया है। जिसके कारण उन्हें मुफलिसी और गरीबी की आग में अपना बचपन जलाना पड़ रहा है

Sunday 4 November 2012

हमें निरक्षर साबित करते सांप्रदायिक झगडे


मैंने बी0 0 किया है, मैंने एम0 0 किया है , मैं एम0 बी0 0 कर रहा हूँ, मैं तो आई0 0 एस0 की तैयारी कर रहा हूँ -------------------- ये सब हम लोग कहते तो जरूर हैं परन्तु इतना सब कुछ करने के बाद भी हम अनपढ़ जाहिलों की तरह किसी भी छोटी सी बात पर एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते है
पता नही क्यों धर्म जाति के नाम पर हम तुरंत आवेश में आकर लड़ाई झगडा शुरू कर देते हैं जो की हमारे पढ़े लिखे जाहिल होने को दर्शाता है आज भी हमारे यहाँ होने वाले सम्प्रदायिक झगड़े हमारी निरक्षरता को दर्शाते है और हमें किताबी ज्ञान के साथ साथ सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते है
आखिर हम धर्म और आस्था के नाम पर कब तक लड़ते रहेंगें
मै कहता हूँ  की धर्म और आस्था के नाम पर झगड़ा शुरू करने वाले निरक्षर है, परन्तु उसे आगे बढ़ने वाले तो साक्षर हैं परन्तु मेरे हिसाब से उनसे बड़ा निरक्षर कोई नही हैं जो ऐसे लड़ाई झगड़ो को रोकने की बजाय आगे बढ़ाने का कार्य करते है
अगर आगे भी इसी तरह हम सांप्रदायिक झगड़ों को बढ़ावा देते रहे तो वह दिन दूर नही जब हम विश्व के मानचित्र पर पूर्णतः निरक्षर साबित होते नजर आयेंगें

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आस्था या आतंक


एक तरफ हम कहते है हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगीरी से करना चाहिए और कहीं कहीं हम गांधीगीरी करते भी है पर जहाँ कहीं आस्था से जुडी कोई बात होती है तो हम क्यों उत्तेजित हो जाते है क्या हमारा धर्म हमारी आस्था हमें इसकी इजाजत देती है ? शायद कभी नही, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों A जिस ईश्वर , अल्लाह की आस्था में हम दिन-रात  लगे रहते है उसी के नाम पर हम लड़ाई झगडा करने पर उतारू हो जाते है, इन धार्मिक लड़ियों से हमे सिर्फ नुक्सान होता है, फायदा कभी नही होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई होती है उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नही निकलता, आज हम धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर , अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान होंगे, धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई - झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकल फेंकना होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा,

Thursday 11 October 2012

क्या हम दो - हमारे दो को कानूनी जामा पहनाना होगा ?


आज हम लगभग  सवा अरब के करीब पहुंच चुके  है फिर भी आपस में होढ लगी है की कौन आगे है पर हम सायद यह नही जानते की हमारी बढ़ती आबादी भी कहीं न कहीं हमारे विकास में सबसे बड़ी बाधक  है 
आज हमारा भारत विश्व के मानचित्र पर सायद दुसरे या तीसरे नंबर पर हो पर आबादी में, क्योंकि आज भी हम अपने देश को अगर कुछ दे पा रहे है तो वह है जनसँख्या वृद्धी जो की हमारे लिए ही कहीं न कहीं घातक  सिद्ध हो रही है और आगे और भी होगी 
क्या हमने कभी सोंचा है की आज हम जिस महंगाई, आर्थिक समस्या, विकास ,युद्ध, अपराध , भरष्टाचार आदि जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं से लड़ रहे है उसके पीछे मुख्य कारन कौन है वह है हमारे देश की निरंतर तेजी से बढ़ रही जनसंख्या सिर्फ कहने को हम साक्षर है परन्तु बच्चे पैदा करने में हम निरक्षर हो जाते है हमने एक स्लोगन बनाया था  बहुत दिन पहले हम दो हमारे दो पर हम जब खुद ही दो से ज्यादा होने की सोंचते है तो हमारे दो तो अपने आप ही तीन - चार से ज्यादा हो जायेंगे .
इन सबके पीछे सबसे मजे की बात तो यह है की हम एक दुसरे पर आरोप  लगाते  नजर आते है की वह गलत है, हमने किया तो क्या गलत किया हिन्दू कहता  है  की अगर मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा कर सकत है तो हम क्यों नही, वहीं मुसलमान  कहता है  की हमारा तो धर्म हमें इसकी इजाजत देता है परन्तु  दोनों यह नही जानते  की दोनों गलत है और उनकी यह गलती उन्ही के लिए हानिकारक है ! आज हमारी सरकार जनसँख्या बृद्धि को रोकने के लिए साल में अरबों रूपये खर्च कर रही है जिसके अंतर्गत कई महत्व पूर्ण ज्ञान दाई योजनायें सरकार द्वारा चलाई जा रही है परन्तु मुझे तो लगता है की साल में खर्च होने वाला यह रूपया व्यर्थ ही जाता  है ! क्या आपको नही लगता की देश की जनसँख्या वृद्धि रोकने के लिए हमे रूपये खर्च करने की जरूरत है ! मेरे हिसाब से यह तो हर व्यक्ति को खुद  से सोंच कर और इस पर अमल करते हुए देश की बढ़ती जनसंख को रोकना चाहिए 
मेरा मानना है की अगर  आज हमारे देश की बढ़ती जनसँख्या पर अंकुश लगेगा तो हम शीघ्र ही एक ऐसी  प्रगति की ओर बढ़ने लगेंगे जिसके बारे में आज हम सिर्फ सोंच सकते है और अन्य देशों को उसकी तरफ बढ़ते देखते है 
जनसँख्या नियंत्रण से हमें अपने ही देश में फैली अराजकता मंहगाई ख़राब अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में बल मिलेगा !
हर भारतवासी को यह प्रण लेना होगा की हमारे दो ही बच्चे हों चाहे वह लड़का हो या लड़की तभी हम तेजी से बढ़ती जनसँख्या को रोक पाने में सक्षम होंगे वरना आने वाले समय में हमें भी अपने कुछ पड़ोसी मुल्को की तरह संविधान द्वारा कानून बनाना पड़ेगा जो हमे दो बच्चे ही पैदा करने पर बाध्य करता रहेगा 
पर यदि हम इस विषय पर खुद से अमल करना शुरू कर दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा !


Saturday 6 October 2012

रिश्तो से बड़ी शराब


रोज शाम होते ही सारे दोस्त इकट्ठा होने लगते है और शाम रंगीन करने की बात आपस में करने लगते है पर मेरे पहुँचते ही सुनील कहता है की लो आ गये महात्मा जी अभी लेक्चर देंगे और सबका मूड ऑफ करेंगे कपिल कहता है की न तो पीते है और अगर हम इन्जोय करना चाहते है तो उसमे भी अपनी टांग अड़ाते है .

जी हाँ आप सोच रहे होंगे की यह कोई कहानी सुना रहा हूँ  मैं पर ये कहानी लगभग हर जगह दोस्तों के ग्रुप में शराब पीने को लेकर दोहराई जाती है जिसमे हर शाम शराब पीने वाले हर दोस्त को न पीने वाला दोस्त समझाता नजर आता है .

आज शराब पीने की आदत ने हमारे कई भाइयों व दोस्तों के घर को उजाड़ दिया है चाहे वह अमीर हो या गरीब  शराब रोजाना एक नए अपराध को जन्म देती है और जब सुबह नशा उतरता है तो अपराधी को बहुत ही पछतावा होता है और तमाम कसमे खाने लगता है शराब न पीने की परन्तु आने वाली शाम उसे हर कसम भूलने पर मजबूर कर देती है और पीछे घट चुकी घटना की नई शराब की बोतल के साथ अँधेरे में खो जाने पर मजबूर कर देती है .

आज हमारे देश के नौजवान शराब पीने को अपना शौक तो मानते ही है साथ ही उसे स्टेटस सिम्बल मानना भी अपनी शान समझते है .

 आपको ध्यान होगा की पीछे मैंने कहा था  की मेरे आते ही --------------------------------- इससे मेरा मतलब है की आज भी लगभग हर पीने वाले ग्रुप में कोई न कोई न पीने वाला दोस्त भी होता है जो पीने वाले दोस्तों को पीने के बाद सँभालने और होश में आने पर दोबारा न पीने के लिए समझाने का काम करता है पर शराब! वो तो दोस्ती रिश्ते सबको दांव पर लगाकर हमेशा अपनी ही जीत की ख़ुशी मनाती नजर आती है अधिकतर शराब पीने वालो के जीवन में बीबी बच्चे माँ बाप भाई बहन से भी ज्यादा करीबी रिश्ता शराब से ही होता है जो उनके जीवन को सभी रिश्तों से दूर करके एक नया रिश्ता दिखाता नजर आता है पर रास्ता कहाँ जा रहा है यह न पीने वाला जानता है और न शराब जानती है .

अक्सर  आपने देखा होगा की पीने वाले लोग एक दुसरे को दोष देते नजर आते है की साले को बहुत मना  किया की आज नही पीने का मूड है पर साला माना ही नही जबरदस्ती पिला दी पर मैं कभी जबरदस्ती जैसे शब्द पर बहुत कम यकीं करता हूँ क्योंकि क्या कोई जबरदस्ती करेगा अगर हम जबरदस्ती करवाना न चाहें .

आज हमारे देश को शराब की बिक्री से बहुत फायदा है पर सारा नुकशान तो वे झेलते है जो शराबियों के करीब होते है अब वे चाहे उनके दोस्त या रिश्तेदार हो या फिर अपने पूरे होशोहवाश में उनके नजदीक से गुजरने वाले लोग .

मेरा मानना है की आज अगर शराब पीने वाले शराब पीना छोड़ दें तो कई दोस्त दोस्तों पर अपना विश्वाश जमा लेंगे खुद को कमजोर समझने वाली पत्नियों को एक नई ताकत मिलेगी बूढ़े माँ बाप को एक सहारा मिलेगा साथ ही बेबस मासूम बच्चों के चेहरे पर एक पर एक नई ख़ुशी होगी परन्तु क्या ये सब इतना आसान है, इसका जबाब तो एक शराब पीने वाला ही दे सकता है 

हमारे देश के कई राज्यों में शराब बंद होने से राज्यों को आर्थिक नुकशान तो जरूर हुआ है परन्तु कितने घरों के चिराग बुझने से पहले फिर से रोसन हो गए है जो अपने परिवार को एक नई दिशा देने में आज अपना पूरा योगदान दे रहे हैं 

अब फैसला आपके हाँथ में है की शराब अपनी है की रिश्ते .

Sunday 30 September 2012

कमजोर कानून - ताकतवर अपराधी

आज हम अपने ही देश,राज्य,यहाँ तक की अपने ही घर में सुरक्षित नही है.कौन हमें कब कहा लूट ले और जान से मार दे यह हम जान भी नहीं सकते, इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारन है हमारा कमजोर और बेबस क़ानून. हमारे देश का क़ानून इतना लचर क्यों है क्या?आपने कभी सोचा है,यदि हमारी अदालतें अपने दिए गये फैसलों पर सख्ती से अमल करें तो हर छोटा व बड़ा मुजरिम दोबारा अपराध की सोचेगा भी नहीं,लेकिन यहाँ तो एक अदालत मुजरिम को सजा देती है और दूसरी उसे जमानत पर छोड़ देती है जिससे उसे दोबारा अपराध करने में बल मिलता है, और वह बार बार अपराध करने का अपना खेल जारी रखता है, कहीं कहीं तो आपने ऐसा भी देखा होगा की हम जानते है की अपराधी कौन है और पुलिस व कानून भी जनता है की अपराधी कौन है परन्तु सबूत और गवाह की कमी के कारण वह अपराध करने के बाद भी खुला घूमता है, इसके पीछे तो मुझे सारा दोष अपने देश के लचीले कानून का नजर आता है जबकी शायद आपको अपने कुछ पडोसी मुल्को के कानून का पता होगा जहाँ जैसा अपराध वहां वैसी सजा वह भी तुरंत बिना ज्यादा किसी सुनवाई के,पर यहाँ तो एक छोटे से छोटे अपराध का मुकदमा कई सालो तक चलता है और अंत मे अधिकतर अपराधी बाइज्जत बरी होते नजर आते है.आखिर ऐसा लचीला कानून कब तक हमें अपराधियों के खौफ के तले जीने पर मजबूर करता रहेगा.हमारी सरकारों को चाहिए की संविधान में संशोधन करते हुए अपराधो से संबंधित कानून को इतना सख्त कर दे की अपराधी उस सख्ती के बारे में सुनकर ही अपराध से तौबा कर ले.तभी हमारे देश का हर नागरिक अपने देश में आजादी से जी सकेगा.

Sunday 9 September 2012

जुगाड़ हमारे जीवन का अहम हिस्सा क्यों ?


जुगाड़ हमारे जीवन का अहम हिस्सा है 
आप सोच रहे होंगे की ये जुगाड़ हमारे जीवन का अहम हिस्सा कैसे बन सकता है इसका जबाब आप मुझसे न लेकाज खुद से पूछिए तो शायद आपको सही और समुचित जबाब मिल जायेगा परन्तु जुगाड़ शब्द हमारे जीवन को कितना सुख देता है और दूसरे को कितना दुःख ये तो आप ही जाने 
  आखिर हम हर चीज या हर कम को पूरा करने के लिए जुगाड़ क्यों ढूढ़ते है क्या बिना जुगाड़ के हमारा कम नही हो सकता ? हो सकता है परन्तु हम बिना जुगाड़ या सोर्स के कोई  काम शान के खिलाफ समझते है / इसी कारण हम छोटे से छोटे कम के लिए जुगाड़ ढूढ़ते फिरते  है / बैंक में पैसे लेने हो या जमा करने हो हम लें में लग्न अपनी तौहीन समझते है और जुगाड़ ढूढ़ते है की कोई परिचित का मिल जाए और हम काउंटर के अन्दर से पैसा जमा करा दे / इसी तरह रेल टिकेट , बस  टिकेट , गैस सिलेंडर  किसी सरकारी कार्यालय , गैर सरकारी कार्यालय में लाइन में न लगकर जुगाड़ को अपने कम के प्रति प्राथमिकता देना हमारी इस आदत से उन लोगो को कितना , नुकसान पहुंचता है जिन बेचारों के पास न तो कोई जुगाड़ है न ही कोई सोर्स /आप ही सोचो एक व्यक्ति एक गैस सिलेंडर  के लिए चार से पाच  घंटे तक लाइन  में खड़े होकर इंतजार कर सकता है अपनी बारी आने का और वहीं दूसरी तरफ एक व्यक्ति एसा भी होता है जो बिना किसी लाइन  में लगे तुरंत एक से दो सिलेंडर मिनटों में अपने घर ले जाता है आखिर कैसे ? आखिर उसका कही न कही जुगाड़ है परन्तु उसने कभी यह सोचा है की चार से पाच घंटे लाइन में खड़ा होने वाला व्यक्ति भी उसी की तरह एक इन्सान है उसकी भी जरूरत है उसका भी अपना परिवार है पर अगर हम ये सब सोचे तो हम भी लाइन में लगकर अपना कम न कर लें 
आज दुसरे कई देश हम से ज्यादा तरक्की क्यों कर रहे है क्योकि वहा कोई छोटा बड़ा नही है वहां सबको एक समान रूप से देखा जाता है और सबका कम भी एक समान रूप से किया जाता है इसी कारन किसी को किसी प्रकार की परेशानी का सामना नही करना पड़ता है हमे अपने देश में भी यह सोच अपने अन्दर पैदा करनी होगी की न कोई बड़ा है न कोई छोटा सभी को एक समान रूप से अपने हर कार्य के लिए पूर्ण अधिकार है तभी हम भी अन्य देशो से बराबरी का मुकाबला कर पाएंगे और हमे या हमारे अन्य भाइयो को अपने किसी भी कार्य के लिए किसी से पीछे नही रहना पड़ेगा 

Wednesday 8 August 2012

कहीं हम भी तो भ्रष्ट नही

आज हमारे देश में हर कोई भ्रस्ताचार के खिलाफ मुहीम छेड़ रखे है, जहाँ कही भ्रस्ताचार के खिलाफ बात होती है वहाँ हर इन्सान भ्रस्ताचार के खिलाफ खड़े होने की बात स्वीकारता नजर आता है, पर क्या आपने कभी सोचा है कि जिस भ्रस्ताचार को हम जड़ से मिटाने की बात कर रहे है कही उसमे हम भी तो लिप्त नहीं है,जी हाँ हम भी हैं,पर यह हम कभी अपने मुहँसे स्वयं को नहीं कह सकते क्योकि हमारी आत्मा हमारा जमीर हमें कभी भ्रष्ट माननेके लिए नहीं स्वीकारेगा हाँ दुसरे को हम भ्रष्ट कह सकते है, क्योंकि उसके अन्दर की कमियां उसके अन्दर छिपा भ्रष्ट चेहरा हमे तुरंत  दिखाई पढ़ जाता है, परन्तु हमारे अन्दर का भ्रष्टाचार हमे नही दिखाई देता
मेरा तो मानना है की समाज का हर व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है और वह भ्रष्ट भी है , परन्तु शायद आप इसे न स्वीकारे , भ्रष्टाचार का अर्थ क्या है, शायद न आप को ठीक से पता है, न ही मुझे, मेरे हिसाब से वह हर कार्य भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है जिसे हम अपनी शुख सुबिधा के लिए दुसरे को तकलीफ में डालकर करतें है, आज इस आधुनिक युग में हमारी जरूरते इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है की हम हर जगह जिन्दगी में शार्ट कट ही ढूढ़ते नजर आते है, सिर्फ अपनी सुख सुबिधाओं के लिए, जिससे हम आगे तो बढ़ते है पर हमार रास्ता गलत होता है, हम तमाम जगहों पर बिरोध - प्रदर्शन अनशन सत्याग्रह आन्दोलन जैसे हथकंडो द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम  तो छेड़ते है परन्तु उस मुहीम  को कितना सफल बना पाते है, यह तो आप जानते है, आखिर क्यों ? क्योंकि कहीं न कहीं हम स्वयं भ्रष्ट है, हम और आप एक ग्राम प्रधान से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को भ्रष्ट कहने में संकोच नही करते  पर आपने कभी यह जानने की कोसिस की है की अगर आज हमारे देश के नेता भ्रष्ट है तो उसके पीछे कारण कौन है ? कोई दूसरा नही स्वयं हम उन्हें भ्रष्ट बनाने के जिम्मेदार है , बस अंतर इतना है की वो बड़े भ्रष्ट है और हम छोटे,आप सोच रहे होंगे की ये तो सरासर इल्जाम है जी हाँ एक बार आप इसे इल्जाम ही मानकर अपने ऊपर लेकर तो देखो आपकी आत्मा खुद ही यही कहेगी की तुम गलत हो, और वह गलत रास्ता तुम सिर्फ अपनी जरा सी सुबिधाओं के लिए अपनाते हो जो तुम्हारे साथ-साथ कईयों को भ्रष्ट की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है , कुछ लोग तो गलत ढंग से कमाए जाने वाले पैसे को ही सिर्फ भ्रष्ट की श्रेणी में मानते है, परन्तु मेरे हिसाब से पैसा गलता ढंग से कैसे आया,. गलत कम करके , इसलिए वह हर गलत कम जो अपनी सुख - सुबिधाओं के लिए किया जाता है वह भ्रष्टचार की श्रेणी में आता है, भ्रष्टाचार पर रोक लग सकती है, इसे पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है परन्तु न किसी आन्दोलन से न सत्याग्रह से, न ही बिरोध - प्रदर्शन से इसे समाप्त करने के लिए हमारे देश में हर छोटे - बड़े, गरीब - अमींर नागरिक को अपनी सुख - सुबिधाओं के लिए शार्ट कट रास्तों को बंद करके, नियम और सिस्टम के अनिसार चलना होगा, सही को सही गलत को गलत मानना होगा, सभी को एक निगाह से देखना होगा तभी जाकर इस भ्रष्टाचार रुपी राक्षस का खात्मा हो पाएगा,