एक तरफ हम कहते है हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगीरी से करना चाहिए और कहीं कहीं हम गांधीगीरी करते भी है पर जहाँ कहीं आस्था से जुडी कोई बात होती है तो हम क्यों उत्तेजित हो जाते है क्या हमारा धर्म हमारी आस्था हमें इसकी इजाजत देती है ? शायद कभी नही, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों A जिस ईश्वर , अल्लाह की आस्था में हम दिन-रात लगे रहते है उसी के नाम पर हम लड़ाई झगडा करने पर उतारू हो जाते है, इन धार्मिक लड़ियों से हमे सिर्फ नुक्सान होता है, फायदा कभी नही होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई होती है उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नही निकलता, आज हम धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर , अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान होंगे, धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई - झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकल फेंकना होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा,
Sunday, 4 November 2012
आस्था या आतंक
एक तरफ हम कहते है हमें अपने हर आन्दोलन को गांधीगीरी से करना चाहिए और कहीं कहीं हम गांधीगीरी करते भी है पर जहाँ कहीं आस्था से जुडी कोई बात होती है तो हम क्यों उत्तेजित हो जाते है क्या हमारा धर्म हमारी आस्था हमें इसकी इजाजत देती है ? शायद कभी नही, धर्म के नाम पर लोग क्यों उत्तेजित होकर उन्माद फ़ैलाने की कोशिश करते हैं वो चाहे जिस धर्म के हों A जिस ईश्वर , अल्लाह की आस्था में हम दिन-रात लगे रहते है उसी के नाम पर हम लड़ाई झगडा करने पर उतारू हो जाते है, इन धार्मिक लड़ियों से हमे सिर्फ नुक्सान होता है, फायदा कभी नही होता, धर्म के नाम पर होने वाले दंगे सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई होती है उनका कोई सही निष्कर्ष कभी नही निकलता, आज हम धर्म को झगड़ों से दूर रखें तो हमारी धार्मिक आस्था को एक नया बल मिलेगा और हम अपने ईश्वर , अल्लाह के प्रति अधिक निष्ठावान होंगे, धर्म के नाम पर होने वाले लड़ाई - झगड़ों को हमें अपने दिल-दिमाग से बाहर निकल फेंकना होगा तभी हमारा जीवन आस्था के प्रति भय मुक्त होगा,
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