Saturday, 10 November 2012

जान पर खेल कर पेट पालता बचपन


धार्मिक नगरी अयोध्या में हर रोज़ हज़ारो लोग दर्शन और पूजन कर पुण्य कमाने आते है। पावन सलिला सरयू में डूबकिया लगाकर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते है। और अपने को पवित्र करते है। लेकिन इसी अयोध्या के सरयू तट के किनारे समाज का एक स्याह पहलु भी नज़र आता है। जहां दर्जनों मासूम बच्चे पेट की आग बुझाने के लिए अपने बचपन की ख्वाहिशो का गला घोट कर दो जून की रोटी के लिए जद्दोजेहद में लगे है
धर्म नगरी अयोध्या के सरयू तट के किनारे दर्जन भर ऐसे मासूम बच्चे है जो जान जोखिम में डाल कर नदी से पैसे निकलने और नाव चलाने का काम करते है। पूरे दिन नदी से सिक्के ढूँढने की कोशिश जारी रहती है और पूरे दिन की मेहनत के बाद जब शाम को चंद सिक्के हाथो में आते है तो इन्ही सिक्को से शाम की रोटी का जुगाड़ हो पाता है। सरयू की पवित्र धारा से सिक्के निकालने वाले तमाम बच्चे तो ऐसे है जिन्हें न तो स्कूल के बारे में पता है और ना ही किताबों के उनके लिए तो सरयू की लहरे ही उस किताब की तरह है जिसने उन्हें समाज में गरीबी के अभिशाप की कडवी सच्चाई से रूबरू कराया है। नदी में नाव चलाने और सिक्के निकालने का जोखिम भरा काम करने वाले ये मासूम अपनी मर्जी से ये काम नहीं करते बल्कि परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ये काम करने को मजबूर है। ये मासूम भी स्कूल जाना चाहते है। पढ़ना चाहते है। कुछ बनाना चाहते है। लेकिन इनके माँ बाप के पास इतने पैसे नहीं की वो इन्हें स्कूल भेज सके और इसी मजबूरी के चलते ये मासूम अपना बचपन पेट की आग में जला रहे है
वही इन मासूमो की इस मजबूरी के बदले सरकारी मदद के बारे में हमने जिला प्रशाशन के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने पहले तो इस तरह की किसी समस्या से इनकार कर दिया लेकिन इतना ज़रूर कहा की जांच में अगर सही पाया जायेगा तो इनकी मदद की जाएगी।
परिवार की मजबूरियों तले अपना बचपन खो रहे इन मासूम को नहीं पता की जिस पवित्र सरयू में एक डुबकी लगा लेने से लोगो के जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते है। उसी सरयू में दिन भर डूबे रहने के बाद भी ऐसा कौन सा पाप उन्होंने किया है। जिसके कारण उन्हें मुफलिसी और गरीबी की आग में अपना बचपन जलाना पड़ रहा है

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