Saturday 10 November 2012

क्या है फ़ैज़ाबाद की गुलाबबाड़ी?


मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में कौन नहीं जानता, प्रेम का प्रतीक ताजमहल अपनी खूबसूरती के लिए देश में ही नहीं बल्कि बिदेशो में भी मशहूर है। लेकिन आज यहाँ हम आपको ताजमहल के बारे में नहीं बल्कि फैजाबाद के नवाबों के शासन काल में निर्मित इमारतों में कुछ अलग सी दिखने वाली इमारत जो कि अवध के तीसरे नबाब शुजाउददौला का मकबरा गुलाबबाडी के नाम से मशहूर है के बारे में बताने जा रहे हैं
      जी हाँ हम बात कर रहे है गुलाबबाडी की, जिसका निर्माण स्वयं नबाब शुजाउददौला ने 1719 से 1775 ई. में कराया था। सन 1753 ई. में नबाब शुजाउददौला के पिता नबाब सफ़दर जंग का इंतकाल हो जाने के बाद उनका पार्थिव शरीर भी कुछ समय के लिये यहाँ रखा गया था। जो बाद में दिल्ली ले जाया गया लेकिन कब्र के निशान आज भी यहाँ है। 1775 ई. में  इंतकाल होने के बाद नबाब शुजाउददौला को भी यही सुपुर्दे खाक किया गयाअवध में तीन नवाब हुए पहले नवाब बुर्हनुल मुल्क सआदत खां दुसरे नवाब सफ़दर जंग और तीसरे नबाब शुजाउददौला नबाब सफ़दर जंग के बेटे थे। उनका असली नाम जलालुद्दीन हैदर था। उनको सुजाउददौला का ख़िताब अवध के सूबेदार नियुक्त किये जाने के पहले ही मुग़ल के बादशाह अहमद शाह ने दिया था। शुजाउददौला को मुग़ल हुकूमत के पतन और अफरा-तफरी के पूरा आभास हो गया था। इसलिए अवध का सूबेदार न्युक्त किया जाने के बाद उन्होंने देहेली की राजनीति से दूर रहना ही उचित समझा और अपना पूरा ध्यान अवध को सम्रधशाली राज्य बनाने पर केन्द्रित किया। उनके समय में अवध का राज्य इतना शक्तिशाली हो गया था कि दूसरे-दूसरे सूबेदार भी उनसे सहायता माँगा करते थे। अब देहली के फनकारों, साहित्यकारों ने अवध में बसना शुरू कर दिया। उस समय ईस्ट इण्डिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अवध को सुरक्षित करने की चिंता नबाब शुजाउददौला को सताने लगी इसीलिये 1764 में उन्होंने मीर कासिम के साथ अंग्रेजों से युद्ध लड़ा लेकिन दुर्भाग्य हार का मुंह देखना पड़ा। और तावान के रूप में भारी रकम अंग्रेजों को देनी पडी रकम भी इतनी बड़ी थी कि उनकी बेगम बहू बेगम साहिबा को अपने सुहाग कि निशानी नाक की कील भी बेचनी पडी। इस हार के बावजूद भी नबाव साहब ने हिम्मत नहीं हारी और कोड़ा जहानाबाद में मरहटों की सहायता से दूसरी बार अंग्रेजों से युद्ध किया लेकिन भाग्य नें इस बार भी साथ नही दिया और उनको अंग्रेजो से कड़ी और अनुचित शर्तों पर संधि करनी पडी। अवध के दो जनपदों कोड़ा और इलाहाबाद अंग्रेजों को देने पड़े और साथ में 50 लाख रूपये तावान के रूप में देने पड़े। नवाब शुजाउददौला का कार्य काल सन 1753 से 1775 तक का मना गया है नवाब सुजाउददौला 23 वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठ शासन प्रारंभ किया।
      आज फैजाबाद में जितनी भी एतिहशिक इमारते है वो सुजाउददौला या उनके मातहतो के द्वारा निर्मित है गुलाबबाडी की नायब खूबसूरती की चर्चे दूर-दूर तक थे। गुलाबबाड़ी के जो दरे बने है उनके बारे कहा जाता है की वह एक सीध में बने है और लखनऊ के हुसेनाबाद तक एक सीध में देखे जा सकते थे। नवाब शुजाउददौला इसमें आराम किया करते थे और यहीं से रियासत पर नजर रखते थे लखौरी ईंट से निर्मित नायब खूबसूरती लिये गुलाबबाड़ी में गुलाब के फूलों की कई दुर्लभ किस्मे हुआ करती थी जिसमे नवाब साहब सैर किया करते थे गुलाबबाडी के मकबरे में नवाब शुजाउददौला के वालिद नवाब सफ़दर जंग उनकी माँ मोती बेगम और खुद नवाब शुजाउददौला की कब्र लाइन से बनी है कुछ समय बाद नवाब सफ़दर जंग की कब्र को दिल्ली भेज दिया गया। गुलाबबाड़ी में एक इमामबाडा और एक मस्जिद है जहाँ नवाब साहब नमाज अदा किया करते थे। जहाँ आज भी मजलिसे और महफिले हुआ करती है।

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