Sunday 31 March 2013

कहीं हिंदी अंग्रेजी की गुलाम तो नही हो जाएगी ?



आज हिंदी भाषा  को ठीक से बोल पाना हमारे देश के  नौनिहालों  के लिए एक अभिषाप बनता जा रहा है . आज हमारे भारत वर्ष में मात्रभाषा कही जाने वाली हिंदी की जगह अंग्रेजी ने जरूर ले ली है परन्तु हिंदी का धीरे धीरे विलोपन आने वाले समय में हमारी संस्कृत और सभ्यता  के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है .
आज हमारे बच्चों की पढाई का ठेका इंग्लिश मीडियम स्कूलों ने ले लिया है  जहाँ सारी पढाई अधिकतर सिर्फ अंग्रेजी में ही होती है जिसकी वजह से हिंदी पर बच्चों की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है .इसी बात पर मै  आपको एक मजेदार एवं दुर्भाग्यपूर्ण किस्सा सुनाता हूँ .
चंद दिनों पहले मेरी बहन उनका बेटा हमारे घर आए बातों  ही बातों में हमने इंग्लिश मीडियम स्कूल के ग्यारहवीं में पढ़ने वाले अपने भांजे को एक हिंदी का लेख पढ़ने को दिया लेख को देखते ही वह तपाक से बोला यह तो हिंदी में लिखा है, हमने कहा तो क्या हुआ ? तुम्हे हिंदी नही आती, वह बोला मामा धीरे धीरे टूटी फूटो पढ़ लूँगा . फिर उसने जब उस लेख को पढना शुरू किया तो मानो गलतियों की बौछार सी होने लगी . तभी मुझे महसूस हुआ की आज हमारे बच्चों की पढाई में से हमारी मात्रभाषा ही उन्हें खुद से दूर करती जा रही है जिनके परिणाम आने वाले समय में हमारे सम्पूर्ण भारत को ही भुगतने होंगे .
मै आज अपने देश के सभी बच्चों से पूछना चाहूँगा की उन्होंने कभी यह सोचा और देखा है की आज वे जिन देशों  की नक़ल करते है क्या वे देश कभी उनकी नक़ल करते नजर आते है ? शायद नही .
आज अगर कोई अंग्रेज हिंदी बोलता है तो वह सिर्फ शौक के लिए की अपनी जरूरत के लिए , पर हम अंग्रेजी अपनी जरूरत के लिए बोलते है की सिर्फ शौक के लिए .
आज तमाम देश जैसे चीन , रूस , जापान  आदि अपने देश में सिर्फ अपनी भाष का प्रयोग करते है की अंग्रेजी का .
अगर आज हमने अपने बच्चों को हिंदी से दूर रखा तो वह दिन दूर नही जब हिंदी भाषा सिर्फ हमारे देश का इतिहास बनकर रह जाएगी वह भी HINDI KI HISTORY  के रूप में .

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